
Patna: Nitish Kumar: एनडीए सरकार का गठन हो चुका है और सभी सांसदों को उनके मंत्रालयों का कार्यभार सौंप दिया गया है. इस प्रक्रिया के पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को मिलने वाले मंत्रालयों को लेकर काफी चर्चा हो रही थी.
12 सांसदों वाली जेडीयू को केवल दो मंत्रालय मिले हैं
लेकिन जब विभागों का बंटवारा हुआ तो यह स्पष्ट हुआ कि 12 सांसदों वाली जेडीयू को केवल दो मंत्रालय मिले हैं. इससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या वाकई नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन छोड़कर एनडीए में आने का कोई खास फायदा हुआ है.
टीडीपी और जेडीयू दोनों ही किंगमेकर की भूमिका में
एनडीए सरकार में 30 कैबिनेट मंत्री हैं जिसमें सहयोगी दलों के सांसदों को भी शामिल किया गया है. जेडीयू के राजीव रंजन सिंह, जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी, हम के प्रमुख जीतन राम मांझी, टीडीपी के के. राम मोहन नायडू और एलजेपी-आरवी के नेता चिराग पासवान को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद टीडीपी और जेडीयू दोनों ही किंगमेकर की भूमिका में थे लेकिन इसका प्रभाव विभागों के बंटवारे में दिखाई नहीं दिया.
Nitish Kumar News: इस बार बिहार से कुल आठ सांसद मंत्री बनाए गए हैं
हैरानी की बात यह है कि विभागों के बंटवारे से पहले यह चर्चा थी कि नीतीश कुमार रेल मंत्रालय, कृषि मंत्रालय और वित्त मंत्रालय की मांग कर रहे थे. जेडीयू के सूत्रों ने भी इस बात की पुष्टि की थी. कहा गया था कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू के 12-12 सांसद हैं इसलिए दोनों पार्टियों को मंत्री पद भी बराबर दिए जाएंगे. लेकिन शपथ ग्रहण के दौरान बीजेपी के चार सांसदों ने मंत्री पद की शपथ ली जबकि जेडीयू से केवल दो सांसदों ने इस बार बिहार से कुल आठ सांसद मंत्री बनाए गए हैं.
इस घटनाक्रम ने राजनीतिक हलकों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू को एनडीए में शामिल होने का वास्तविक लाभ मिला है या नहीं यह एक बड़ी बहस का विषय बन गया है. जेडीयू को केवल दो मंत्रालय मिलने से यह स्पष्ट हो गया है कि नीतीश कुमार की उम्मीदें पूरी नहीं हो पाई हैं और यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में इस राजनीतिक परिदृश्य में क्या बदलाव आते हैं.
Nitish Kumar ने अपनी साख को मजबूती से कायम रखा
नीतीश कुमार ने जब एनडीए में शामिल होने का निर्णय लिया तो उन्हें फिर से बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया. बीजेपी के खाते से डिप्टी सीएम भी नियुक्त किए गए जिससे बिहार की राजनीति एक बार फिर नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द घूमने लगी. महागठबंधन सरकार में भी नीतीश मुख्यमंत्री थे लेकिन आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बढ़ते कद के कारण उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर हो रही थी. एनडीए में वापस आकर और लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन कर नीतीश ने अपनी साख को मजबूती से कायम रखा.
बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. बीजेपी के पास बिहार में ऐसा कोई नेता नहीं है जिसे वह मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर सके. इस स्थिति में एनडीए में नीतीश कुमार का महत्व और भी बढ़ गया है. बीजेपी चाहे या न चाहे नीतीश को ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाएगी. भले ही नीतीश को केंद्र में मनमुताबिक मंत्रालय नहीं मिले हैं लेकिन बिहार की राजनीति में उनकी प्रासंगिकता अगले 5-6 साल तक बनी रहेगी. अगर एनडीए को विधानसभा चुनाव में जीत मिलती है तो नीतीश का फिर से मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है.