गोवा में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान बिहार के राज्यपाल Rajendra Arlekar ने एक ऐतिहासिक और बहस को जन्म देने वाला बयान दिया।
माननीय राज्यपाल श्री राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने विद्या प्रबोधिनी कॉलेज ऑफ कॉमर्स, एजुकेशन, कम्प्यूटर एण्ड मैनेजमेंट, गोवा में इस कॉलेज एवं सेंटर फॉर नार्थ ईस्ट स्टडीज, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित समारोह में आनंदिता सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘A Brief History of… pic.twitter.com/xiPCl59Nvr
— Raj Bhavan, Bihar (@GovernorBihar) December 20, 2024
उन्होंने कहा कि भारत पर शासन करने वाले अंग्रेजों ने केवल सत्याग्रह के कारण देश नहीं छोड़ा, बल्कि जब भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने सशस्त्र आंदोलन का सहारा लिया, तब अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
सशस्त्र क्रांति ने बनाया माहौल: Rajendra Arlekar
राज्यपाल ने कहा, “जब भारत के लोगों ने हथियार उठाए और अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति शुरू की, तब ब्रिटिश सरकार को एहसास हुआ कि अब भारत में उनका टिक पाना संभव नहीं है। सत्याग्रह महत्वपूर्ण था, लेकिन स्वतंत्रता का मार्ग सशस्त्र संघर्ष के बिना अधूरा था।”
वीर क्रांतिकारियों की भूमिका: Rajendra Arlekar
राजेंद्र आर्लेकर ने वीर भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और अन्य क्रांतिकारियों की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि इन क्रांतिकारियों के साहस और बलिदान ने अंग्रेजों को यह संदेश दिया कि भारत के लोग हर हाल में स्वतंत्रता पाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
गांधीजी और सत्याग्रह की अहमियत का भी किया उल्लेख
हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य *महात्मा गांधी और सत्याग्रह आंदोलन* की अहमियत को कम आंकना नहीं है। गांधीजी के अहिंसक आंदोलन ने लोगों को एकजुट किया और ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ों को हिला दिया। लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि सशस्त्र संघर्ष और अहिंसा, दोनों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी-अपनी भूमिका निभाई।
बयान पर मची हलचल
राज्यपाल के इस बयान ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा को तेज कर दिया है। कुछ लोग इसे स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न पहलुओं को उजागर करने वाला बयान मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे सत्याग्रह के महत्व को कम आंकने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं।
राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर का यह बयान स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सशस्त्र संघर्ष और सत्याग्रह दोनों के योगदान पर पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करता है। यह इतिहास की उन परतों को समझने की जरूरत को भी दर्शाता है, जो आज भी बहस का विषय बनी हुई हैं।