Patna: Bihar Chunav के न्तिजों के बाद सारे राजनितिक गालियारों में आश्चर्य उत्साह और निराशा तीनो बराबर है l बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सिर्फ मजबूत वोट-बैंक चुनाव नहीं जिताता। महागठबंधन की हार कई रणनीतिक और राजनीतिक गलतियों का संयुक्त परिणाम रही। आइए गहराई से समझते हैं कि आखिर MGB क्यों हार गया।
Bihar Chunav: 1. लालू परिवार में फूट: तेजप्रताप की नई पार्टी और मीसा भारती की नाराजगी
महागठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी परिवार के भीतर की खींचतान बन गई। तेजप्रताप यादव ने चुनाव से ठीक पहले अपनी अलगपार्टी बना ली, जिससे संगठन और वोट बैंक दोनों में भ्रम पैदा हुआ। दूसरी तरफ मीसा भारती की नाराजगी और टिकट बंटवारे परउनकी असहमति खुलकर सामने आई। इससे जनता में यह छवि बनी कि परिवार ही एकजुट नहीं है, तो वे राज्य को स्थिर नेतृत्व कैसेदेंगे। इस अंदरूनी असहमति ने महागठबंधन की विश्वसनीयता पर सीधा हमला किया।
2. जमीनी स्तर पर कमजोर संगठन
आरजेडी -कांग्रेस का संगठन सीमित जातीय आधार पर टिका रहा। भाजपा और जेडीयू की तरह बूथ–लेवल तक मजबूत कैडर नेटवर्कनहीं दिखा। चुनाव के दिन कार्यकर्ता जुटाने और वोट निकालने की क्षमता में महागठबंधन पिछड़ गया।
3. नौकरी वाले वादे पर भरोसा कम
तेजस्वी के नौकरी वाले वादे पर चर्चा तो खूब हुई, पर ठोस प्लान सामने नहीं आया। युवा बेरोजगार भले थे, पर उन्हें सिर्फ घोषणानहीं, रोडमैप चाहिए था। इस वजह से कई वोटर्स आशंकित रहे।
4. नीतीश कुमार का अनुभव और मैसेजिंग
नीतीश कुमार की प्रशासनिक छवि और लंबे अनुभव ने अभी भी असर दिखाया। महागठबंधन नीतीश के मुकाबले तेजस्वी को ज्यादाभरोसेमंद विकल्प के रूप में पेश नहीं कर पाया। साथ ही, नीतीश के महिलाओं को 10000 रुपए देने वाले दांव का भी महागठबंधनके पास कोई जवाब नहीं रहा।
5. भाजपा का मजबूत सोशल इंजीनियरिंग
बीजेपी ने अति पिछडों, पसमांदा मुस्लिमों, महिलाओं और युवा वोटर्स को अलग–अलग संदेशों के जरिए टारगेट किया। सोशलइंजीनियरिंग और बूथ मैनेजमेंट में महागठबंधन मुकाबला नहीं कर पाया।
6. तेजस्वी का जमीनी मुद्दों पर निरंतर आंदोलन न करना
बिहार में बेरोजगारी, महंगाई, कृषि संकट और युवाओं की तैयारी जैसे मुद्दों पर तेजस्वी ने लगातार आंदोलन नहीं किया। चुनाव केकरीब आते–आते वे सक्रिय दिखे, लेकिन पूरे साल ऐसा दबाव नहीं बनाया जिससे जनता को लगे कि वे इन मुद्दों पर वास्तविक रूप सेलड़ रहे हैं। इस गैप का नुकसान सीधे वोट में दिखा।
7. खराब कैम्पेन मैनेजमेंट
पूरा चुनाव तेजस्वी पर निर्भर रहा। टीम, रणनीति और संदेश को लेकर महागठबंधन एकसुर नहीं दिखा। विपक्ष में रहते हुए भी वे कोईमजबूत नैरेटिव नहीं बना पाए।
8. ‘जंगल राज’ नैरेटिव का दोबारा असर
भाजपा ने बार–बार लालू शासन के दौर को याद दिलाया। तेजस्वी इस नैरेटिव को पूरी तरह काट नहीं पाए। शहरी और पहली बारवोट डालने वाले युवा इस कनेक्शन से मानसिक रूप से प्रभावित हुए।
9. विकास की ठोस कहानी पेश नहीं कर पाना
महागठबंधन अपने छोटे शासनकाल की कोई बड़ी उपलब्धि जनता तक नहीं पहुंचा सका। बीजेपी ने इसे लगातार उठाया औरमहागठबंधन वादों तक सीमित दिखा।
10. सीट साझेदारी और टिकट बंटवारे की गलतियां
गलत टिकट वितरण, बगावत और वोट कटने की घटनाओं ने कई सीटें सीधे प्रभावित कीं। भाजपा–जेडीयू की तुलना में महागठबंधनअंदरूनी तालमेल में कमजोर दिखा।
- नेतृत्व और रणनीति में कमजोरी
महागठबंधन के भीतर नेतृत्व असंतुलित था l तेजस्वी यादव का अभियान मजबूत था, लेकिन गठबंधन पार्टियों के बीच तालमेल और सीट बाँटने की रणनीति कमजोर रही l कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों के साथ संवाद की कमी पूरे चुनाव में दिखी।
- महिलाओं के खाते में चुनाव के समय पैसे
चुनाव के समय जिस तरीके से महिलाओं के खाते में पैसे पहुंचाय गए वो एक सबसे बड़ी कड़ी वोट में शामिल हुई और इसी मजबूत कड़ी की कमी महागठबंधन की रैली और सभाओं में भी दिखाई दी l
महागठबंधन की हार सिर्फ नेतृत्व या वोटों की कमी नहीं थी। यह रणनीति, बूथ प्रबंधन, सामाजिक गणित और नैरेटिव—चारों स्तरों की असफलता थी। अगर MGB भविष्य में गंभीरता से मुकाबला चाहता है, तो उसे नया, व्यावहारिक और आधुनिक चुनावी मॉडल अपनाना होगा l कुछ लोगों की दबी जुबान ये बातें भी सामने आयी की आज भी राजद को जो वोट मिलता है वो लालू yadav के नाम के भरोसे मिलता है और महागठबंधन को आने वाले भविष्य में बिहार में अपनी साख मजबूत करनी है तो शुरुवात अपने संगठन की मजबूती से करनी होंगी l
