
रांची/पहलगाम: Pehalgam Terror Attack: “बस आधे घंटे का फर्क था। हम पहलगाम से उतर ही रहे थे कि खबर आई—गोलियां चली हैं, लोग मारे गए हैं।”
🚨 BIG BREAKING
High-level emergency meet begins — HM Amit Shah, LG Manoj Sinha, Omar Abdullah & top officials in attendance.
— Moreover, Among the 25+ Hindu tourists killed, 1 IB officer also martyred in the attack by Pakistani terrorists. pic.twitter.com/OhsDVvyanT
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) April 22, 2025
रांची के कांके निवासी मयंक कुमार की आवाज अब भी कांप रही थी, जब उन्होंने ‘प्रभात खबर’ को फोन पर पहलगाम आतंकी हमले के बारे में बताया।
मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के बैसरन घाटी, पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने 27 से ज्यादा लोगों की जान ले ली। मयंक उन्हीं सैलानियों में से थे, जो कुछ देर पहले तक वहीं मौजूद थे।
Pehalgam Terror Attack: शादी की सालगिरह, जो बदकिस्मती से कश्मीर में मनी
मयंक अपनी पत्नी के साथ शादी की पहली सालगिरह मनाने कश्मीर गए थे। सुबह 10 बजे उन्होंने बैसरन की पहाड़ी की चढ़ाई शुरू की, और दोपहर करीब एक बजे नीचे लौटे। “हमने सोचा था थोड़ी देर और घूम लें, लेकिन थकान की वजह से पहले ही होटल आ गए। अब सोचते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं।”
Pehalgam Terror Attack: हमले के बाद पसरा सन्नाटा
मयंक के मुताबिक हमले के तुरंत बाद सायरनों की आवाजें गूंजने लगीं। “कुछ समझ नहीं आ रहा था। जहां ठहरे थे, वहां के लोगों ने हमें हिम्मत दी, और साफ कहा—‘अभी होटल से बाहर मत निकलिए।’ तभी हमें पता चला कि बड़ा हमला हुआ है।”
उन्होंने बताया कि सुरक्षा बलों ने पूरे इलाके को घेर लिया है, और पर्यटकों को बाहर जाने से मना किया गया है। “अब चारों ओर सन्नाटा है, डर का माहौल है। हम सुबह श्रीनगर के लिए रवाना हो रहे हैं।”
Pehalgam Terror Attack: IB अधिकारी की मौत—रांची का जुड़ाव
इस हमले में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के एक अधिकारी मनीष रंजन की भी हत्या कर दी गई, जो रांची में भी कार्यरत रह चुके थे। मूल रूप से बिहार के रहने वाले मनीष रंजन इस वक्त हैदराबाद में तैनात थे और अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाने आए थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आतंकियों ने उनके परिवार के सामने ही गोली मार दी।
एक शहर, दो कहानियाँ—जिंदगी की दो दिशाएं
एक ओर मयंक जैसे लोग हैं, जो संयोगवश बच निकले, और दूसरी ओर मनीष रंजन जैसे लोग, जो अपने परिवार के साथ जिंदगी का अंत देख बैठे। रांची शहर से निकली ये दोनों कहानियाँ इस आतंकी हमले की गंभीरता और मानवीय पहलू को और भी गहराई से समझने में मदद करती हैं।
क्या यह सिर्फ संयोग था?
हर आतंकी हमला सिर्फ आंकड़े नहीं होता—वो सैकड़ों अधूरी कहानियाँ छोड़ जाता है। मयंक की किस्मत में जिंदगी लिखी थी, लेकिन मनीष रंजन जैसे कई लोगों के परिवार अब सिर्फ यादों के सहारे जीएंगे।



