
जमशेदपुर: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री Champai Soren ने आदिवासियों के धर्म परिवर्तन को लेकर एक बड़ा बयान दिया है।
पूर्व मुख्यमंत्री सह भाजपा नेता @ChampaiSoren ने कांग्रेस को आदिवासी विरोधी पार्टी करार दिया है। सरायकेला में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने डिलिस्टिंग के मुद्दे पर कांग्रेस को आड़े हाथों लिया और इस दिशा में आदिवासी नेता कार्तिक उरांव की पहलों की चर्चा की। pic.twitter.com/b5gfKaQ2Q3
— DD News Jharkhand | डीडी न्यूज झारखंड (@ddnewsranchi) March 29, 2025
उन्होंने कहा कि जो भी आदिवासी धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) के तहत मिलने वाले आरक्षण से बाहर किया जाना चाहिए।
चंपाई सोरेन अब ‘जागो आदिवासी, जागो’ अभियान के तहत झारखंड के विभिन्न जिलों में जनजागरण अभियान चलाएंगे। उन्होंने कहा कि 1967 में प्रसिद्ध आदिवासी नेता बाबा कार्तिक उरांव ने संसद में एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को आरक्षण से वंचित करने की बात कही गई थी।
1967 में संसद में पेश हुआ था प्रस्ताव
चंपाई सोरेन ने बताया कि बाबा कार्तिक उरांव द्वारा लाए गए इस प्रस्ताव को तत्कालीन केंद्र सरकार ने संसदीय समिति को भेज दिया। इस समिति ने मामले की विस्तृत जांच-पड़ताल की और 17 नवंबर 1969 को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं।
इन सिफारिशों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि यदि कोई व्यक्ति आदिवासी परंपराओं को त्याग कर ईसाई या इस्लाम धर्म स्वीकार करता है, तो उसे अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं माना जाएगा। यानी धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को ST आरक्षण से बाहर किया जाना चाहिए।
1969 के बाद भी प्रस्ताव पर नहीं हुई कार्रवाई: Champai Soren
चंपाई सोरेन ने आगे बताया कि जब इस विधेयक पर सालभर तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो बाबा कार्तिक उरांव ने 322 लोकसभा सांसदों और 26 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षरों सहित एक पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सौंपा। इस पत्र में अनुरोध किया गया था कि विधेयक की सिफारिशों को लागू किया जाए।
हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में आकर इस विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
कांग्रेस पर आदिवासी विरोधी नीतियों का आरोप
चंपाई सोरेन ने कांग्रेस पर आदिवासी विरोधी नीतियां अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि –
1961 में कांग्रेस सरकार ने “आदिवासी धर्म कोड” को जनगणना से हटा दिया, जिससे सरना धर्म को मानने वाले आदिवासियों को पहचान संकट का सामना करना पड़ा।
झारखंड आंदोलन के दौरान कई बार आदिवासियों पर गोलियां चलवाई गईं, जिससे आंदोलनकारियों को नुकसान उठाना पड़ा।
उन्होंने कहा कि आदिवासी संस्कृति केवल पूजन पद्धति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण जीवनशैली है। जन्म, विवाह और मृत्यु से जुड़े सभी रीति-रिवाज परंपरागत सरना आदिवासी नेताओं जैसे मांझी परगना, पाहन, मानकी मुंडा, पड़हा राजा आदि द्वारा निभाए जाते हैं।
लेकिन धर्म परिवर्तन के बाद लोग चर्च से जुड़े धार्मिक रीति-रिवाजों को अपनाने लगते हैं। उन्होंने सवाल किया, “क्या चर्च में हमारी परंपराओं के देवता मरांग बुरु या सिंग बोंगा की पूजा होती है?”
र्मांतरण से हमारी संस्कृति और अस्तित्व मिट जाएगा: Champai Soren
चंपाई सोरेन ने कहा कि धर्म परिवर्तन करने वाले लोग सरना परंपराओं से दूर होने के बावजूद आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं, जिससे मूल सरना आदिवासी समाज के बच्चे पीछे रह जाते हैं।
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर इस धर्मांतरण को नहीं रोका गया, तो भविष्य में हमारे सरना स्थलों, जाहेरस्थानों और देशाउली स्थलों में कौन पूजा करेगा? अगर यही स्थिति बनी रही तो आदिवासी संस्कृति धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
जागो आदिवासी, जागो: Champai Soren
चंपाई सोरेन ने आदिवासी समाज से जागरूक होने की अपील करते हुए कहा कि वह पूरे झारखंड में ‘जागो आदिवासी, जागो’ अभियान चलाएंगे। इस अभियान के तहत वह धर्म परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं और आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करेंगे।