रांची: झारखंड में पेसा (PESA Act) कानून को लागू करने में देरी को लेकर राज्य सरकार एक बार फिर सवालों के घेरे में है। गुरुवार को झारखंड हाई कोर्ट की खंड पीठ मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर ने इस मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए सरकार से पूछा कि आखिर पेसा नियामावली लागू करने में और कितना समय लगेगा। अदालत ने राज्य सरकार को स्पष्ट तिथि बताने का निर्देश दिया है, जिससे यह तय हो सके कि नियमावली कब तक प्रभावी होगी।

PESA कानून को लेकर झारखंड में लंबे समय से जारी है इंतजार
पेसा कानून को लागू करना झारखंड के आदिवासी इलाकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह कानून ग्राम सभाओं को अधिकार देता है कि वे अपनी जमीन, प्राकृतिक संसाधन, खनन, शराबबंदी, बाजार और स्थानीय शासन से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय स्वयं ले सकें।
हालांकि झारखंड में यह कानून अभी तक पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाया है। राज्य में इसके नियम (Rules) तैयार किए जा चुके हैं, पर उन्हें नोटिफाई नहीं किया गया है। इस देरी को लेकर लगातार सामाजिक संगठनों, जनजातीय समूहों और विपक्षी दलों ने सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं।
अदालत ने पूछा- नियमावली लागू करने में कितने दिन?
गुरुवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य सरकार के अधिवक्ता से स्पष्ट जवाब मांगा कि पेसा नियामावली लागू करने में कितने दिन और लगेंगे। अदालत ने कहा कि यह मामला सीधे-सीधे आदिवासी समुदायों के अधिकारों से जुड़ा है, इसलिए सरकार को ठोस समय सीमा तय करनी होगी। केवल प्रक्रिया चल रही है या प्रस्ताव विचाराधीन है जैसे जवाब अब स्वीकार्य नहीं होंगे। पीठ ने राज्य सरकार से अगली सुनवाई से पहले लिखित रूप से तिथि प्रस्तुत करने को कहा है।
सरकार के पास जवाब तैयार करने की जरूरत , दबाव बढ़ा
अदालत की इस टिप्पणी के बाद हेमंत सोरेन सरकार पर पेसा लागू करने को लेकर दबाव और बढ़ गया है। विपक्ष पहले ही आरोप लगाता रहा है कि सरकार अपनी राजनीतिक मजबूरियों के कारण पेसा कानून को “अटकाए” हुए है, जबकि सरकार का पक्ष है कि इसे लागू करने से पहले व्यापक जनभागीदारी और ग्राम सभाओं की राय लेना आवश्यक है।
सरकार के अधिकारियों का कहना है कि ड्राफ्ट नियम तैयार होने के बाद जिलों से राय ली गई थी और अंतिम संशोधन की प्रक्रिया जारी है। लेकिन अदालत अब इस तर्क से संतुष्ट नहीं दिखी और उसने सीधे समय सीमा स्पष्ट करने को कहा है।
PESA कानून का झारखंड में सामाजिक महत्व
झारखंड में लगभग 26 फीसदी आबादी आदिवासी समुदाय की है और पेसा कानून उनके स्थानीय स्वशासन का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है।
- इससे ग्राम सभाओं को खनन परियोजनाओं पर अनुमति देने या रोकने का अधिकार मिलेगा
- जमीन अधिग्रहण में ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य होगी
- स्थानीय बाजार, हाट, जल-जंगल-जमीन पर समुदाय का नियंत्रण मजबूत होगा इसी वजह से पेसा को लेकर जनता के बीच भारी उम्मीदें हैं।
अगली सुनवाई महत्वपूर्ण, सरकार को देना होगा ठोस जवाब
अदालत की कठोर टिप्पणी के बाद अब अगली सुनवाई बेहद अहम मानी जा रही है। झारखंड सरकार को स्पष्ट रूप से बताना होगा कि आखिर पेसा नियमावली कब से प्रभावी होगी किस तारीख को इसका नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा। झारखंड में पेसा कानून लागू होने की दिशा में यह सुनवाई एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है। सरकार के जवाब पर ही आने वाले दिनों की दिशा तय होगी।



