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Rajnath Singh: राजनाथ सिंह का बड़ा बयान : “भारतीय मुस्लिमों ने वंदे मातरम् के भाव को सबसे गहराई से समझा”

Rajnath Singh: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सोमवार क वंदे मातरम् की रचना के 150 वर्ष पूरे होने पर विशेष चर्चा आयोजित की गई। इस अवसर पर देश के पहले राष्ट्रीय गीत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व पर कई नेताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। चर्चा के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का भाषण विशेष रूप से चर्चा का केंद्र बना जब उन्होंने कहा कि “सच्चाई यह है कि भारतीय मुस्लिमों ने बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के भाव को कांग्रेस या मुस्लिम लीग के नेताओं की तुलना में कहीं अधिक अच्छी तरह से समझा।”

Rajnath Singh: राजनाथ सिंह का बड़ा बयान : “भारतीय मुस्लिमों ने वंदे मातरम् के भाव को सबसे गहराई से समझा”
Rajnath Singh: राजनाथ सिंह का बड़ा बयान : “भारतीय मुस्लिमों ने वंदे मातरम् के भाव को सबसे गहराई से समझा”

बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय और वंदे मातरम् का राष्ट्रनिर्माण में योगदान

राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में कहा कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने *वंदे मातरम के माध्यम से केवल एक गीत नहीं रचा, बल्कि उन्होंने एक ऐसी राष्ट्रचेतना उत्पन्न की जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में नई ऊर्जा भरी।

उन्होंने बताया कि इस गीत की पंक्तियों ने देशभर में युवाओं, स्वतंत्रता सेनानियों, किसानों और आम लोगों में आत्मविश्वास और देशभक्ति की भावना जगाई। उन्होंने कहा कि यह गीत भारत की सांस्कृतिक विविधता, समन्वयवादी परंपरा और राष्ट्रनिष्ठा का प्रतीक है।

 

“भारतीय मुस्लिमों ने समझा असली भाव”,  विवादों पर नई दृष्टि

राजनाथ सिंह ने अपने वक्तव्य में यह भी स्पष्ट किया कि इतिहास में कई बार *वंदे मातरम्* को लेकर अनावश्यक विवाद खड़े किए गए, जबकि वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है।

उन्होंने कहा कि भारत के मुस्लिम समाज ने इस गीत के भाव को धार्मिक मुकाबले के रूप में नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान के रूप में देखा। उनके अनुसार-

  • स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों ने वंदे मातरम् को सम्मान दिया।
  • अनेक स्थानों पर मुस्लिम समुदाय द्वारा आयोजित सभाओं में भी यह गीत गाया जाता था।
  • वंदे मातरम् को किसी धर्म से जोड़कर नहीं, बल्कि मातृभूमि के सम्मान से जोड़ा गया।

राजनाथ ने कहा कि “यह गीत किसी एक धर्म का नहीं, पूरा भारत का गीत है। जिस धरती ने हमें जन्म दिया, उसी की वंदना ‘वंदे मातरम्’ में है।”

 

संसद में सकारात्मक माहौल, विपक्ष का सहयोग

इस ऐतिहासिक अवसर पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने मिलकर वंदे मातरम् के 150 वर्षों को मनाने पर सहमति जताई।सदन में यह भी प्रस्ताव रखा गया कि इस गीत की विरासत और इतिहास को देश के हर नागरिक तक पहुँचाने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम और शैक्षणिक पहलों को बढ़ावा दिया जाए।

चर्चा के अंत में स्पीकर ने कहा कि “वंदे मातरम् केवल गीत नहीं, हमारी सामूहिक चेतना है, जिसने सदियों से भारत को एक सूत्र में बाँधने का काम किया है।”

 

150 वर्ष बाद भी समान रूप से प्रासंगिक

 

150 साल पूरे होने पर वंदे मातरम् ने फिर सिद्ध कर दिया कि यह गीत न केवल हमारे इतिहास का प्रतीक है बल्कि भविष्य के भारत के लिए भी प्रेरणा है।

राजनाथ सिंह का बयान इस बात पर जोर देता है कि यह गीत किसी समुदाय के खिलाफ नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र की एकता, गर्व और मातृभूमि के प्रति समर्पण का संदेश देता है। भले ही भारत विविधताओं से भरा देश है लेकिन वंदे मातरम् हमें याद दिलाता है कि हमारा राष्ट्रभाव हमेशा हमें जोड़कर रखेगा।

 

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