रांची: झारखंड की राजनीति एक बार फिर बड़े फेरबदल के संकेत दे रही है। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे कानूनी चुनौतियों और गठबंधन में बढ़ती अनिश्चितता के बीच चर्चा तेज़ है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता हेमंत सोरेन भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ नई राजनीतिक पटकथा लिख सकते हैं।
हालांकि अभी तक किसी भी पक्ष ने इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया है, लेकिन सियासी गलियारों में मौजूद संकेत यह बताते हैं कि परिस्थितियाँ किसी बड़े गठबंधन परिवर्तन की ओर इशारा कर रही हैं।

1. कांग्रेस से बढ़ती दूरी और गठबंधन में अविश्वास का माहौल
JMM और कांग्रेस का गठबंधन लंबे समय से अस्थिर सरंचना की तरह रहा है। कांग्रेस के अंदरूनी विवाद नेतृत्व संकट और झारखंड में अपने संगठन को मजबूत करने में असफलता ने JMM को कई बार असहज किया है।
सूत्रों का कहना है कि फैसलों को लेकर दोनों दलों के बीच लगातार खींचतान बढ़ रही है, खासकर टिकट बंटवारे, नेतृत्व की भागीदारी और सरकार में कांग्रेस नेताओं के “ओवरडिमांड” को लेकर।
हेमंत सोरेन कई मौकों पर संकेत दे चुके हैं कि वे गठबंधन राजनीति के दबाव से निकलकर अधिक स्थिर और निर्णायक समर्थन चाहते हैं और यही अंतर कांग्रेस को इस संभावित बदलाव का सबसे बड़ा कारण बनाता है।
2. कानूनी मोर्चे पर राहत की उम्मीद और ‘सुरक्षित विकल्प’ की तलाश
ईडी की पूछताछ जमीन घोटाले के आरोप और कानूनी केसों ने हेमंत सोरेन को लगातार राजनीतिक दबाव में रखा है।
ऐसी स्थिति में दिल्ली की सत्ता से टकराव बढ़ाना जोखिम भरा हो सकता है। BJP का समर्थन या कम से कम उसके साथ किसी “कार्य संबंध” का संकेत सोरेन के लिए एक राजनीतिक सुरक्षा कवच के रूप में देखा जा रहा है।
सियासी विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा परिस्थितियों में सोरेन यदि भाजपा के साथ तालमेल करते हैं, तो उनके लिए कानूनी मामलों में नरमी सहयोग या कम से कम राजनीतिक दबाव में कमी की संभावना बन सकती है।
3. झारखंड की राजनीति में सत्ता संतुलन बदलने का सही समय
राज्य की राजनीतिक स्थिति अस्थिर है कई विधायक दूसरी पार्टियों से संपर्क में बताए जा रहे हैं और गठबंधन पर खतरा लगातार मंडरा रहा है।
ऐसे में हेमंत सोरेन अगर भाजपा के साथ आते हैं तो उन्हें न केवल एक मजबूत स्थिर सरकार का विकल्प मिलेगा बल्कि भाजपा को भी राज्य में सत्ता में वापसी का मौका मिलेगी।
BJP भी यह समझती है कि JMM के साथ आने पर वह राज्य की राजनीति में नए समीकरण बना सकती है और आदिवासी वोट बैंक में अपनी पकड़ बढ़ा सकती है।
दोनों दलों के लिए यह “विन–विन स्थिति” बन सकती है, क्योंकि JMM सत्ता बचाए रखता है और BJP बिना बड़े राजनीतिक संघर्ष के सरकार में निर्णायक भूमिका हासिल कर सकती है।
क्या वाकई होने वाला है गठबंधन परिवर्तन?
हालांकि इन अटकलों में दम दिखता है, लेकिन राजनीति में अंतिम फैसला परदे के पीछे की बातचीत से तय होता है। JMM अभी भी कांग्रेस के साथ गठबंधन को अपना आधिकारिक स्टैंड बता रहा है, और भाजपा भी फिलहाल चुप्पी साधे हुए है।
फिर भी, जमीन पर बदलते समीकरण, कांग्रेस से बढ़ती दूरी और हेमंत सोरेन की राजनीतिक मजबूरियाँ साफ संकेत देती हैं कि आने वाले दिनों में झारखंड की राजनीति में बड़ा उलटफेर सम्भव है।



