
नई दिल्ली – केंद्र सरकार ने जाति जनगणना (Caste Census) को हरी झंडी दे दी है, जिससे देश की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है।
Bengaluru | On the #castesensus to be included in the national census, Congress president Mallikarjun Kharge says, “I hope they will allot the budget, start the caste and general census, and release the report. It’s a long-standing demand of ours. After 2014, when they (the BJP)… pic.twitter.com/SgMsFMSQPr
— ANI (@ANI) April 30, 2025
लंबे समय से लंबित इस मांग को अब सरकार ने मंजूरी दे दी है, और उम्मीद की जा रही है कि 2026 के अंत तक यह पूरी प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। हालांकि सरकार ने अभी तक कोई औपचारिक समयसीमा घोषित नहीं की है, लेकिन गृह मंत्रालय की तैयारियों से संकेत मिलता है कि जनगणना का काम जल्द शुरू हो सकता है।
यह जनगणना भारत की पहली डिजिटल जनगणना होगी
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, जनगणना में देरी की सबसे बड़ी वजह यही थी कि इसमें जाति आधारित आंकड़ों को शामिल किया जाए या नहीं। अब इस पर निर्णय हो चुका है, और प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जा रहा है। यह जनगणना भारत की पहली डिजिटल जनगणना होगी, जिसके लिए मोबाइल ऐप और विशेष पोर्टल तैयार किया गया है।
गृह मंत्रालय ने मार्च 2025 में संसद की एक स्थायी समिति को जानकारी दी थी कि अधिकांश तकनीकी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। मंत्रालय ने कहा, “जैसे ही प्रक्रिया शुरू होगी, अतिरिक्त धन की मांग की जाएगी।” 2019 में सरकार ने जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के लिए करीब 12,000 करोड़ रुपये का बजट तय किया था।
जातिगत जनगणना को लेकर देश में लंबे समय से बहस चल रही है। पिछली बार 1931 में व्यापक जातिगत जनगणना हुई थी, जिसमें ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की संख्या का आधार बना। मंडल आयोग की रिपोर्ट ने इसी आंकड़े के आधार पर OBC की आबादी को 52% बताया था। लेकिन तब से अब तक कोई ताज़ा सरकारी डेटा नहीं आया, जिससे नीतियों के निर्धारण में अस्पष्टता रही।
Caste Census: राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज
जाति जनगणना के ऐलान के बाद विपक्षी दलों ने इसे “सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम” बताया है। कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों ने लंबे समय से इसकी मांग की थी। वहीं कुछ वर्गों ने आशंका जताई है कि इससे समाज में विभाजन की रेखाएं और गहरी हो सकती हैं।
Caste Census: सरकारी योजनाओं को नई दिशा मिलने की उम्मीद
समर्थकों का मानना है कि जाति आधारित आंकड़ों से सरकार को हाशिये पर खड़े वर्गों की शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति को समझने में मदद मिलेगी। इससे योजनाओं को अधिक लक्ष्य केंद्रित और प्रभावी बनाया जा सकेगा।
अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि सरकार इसे किस रूप में लागू करती है और इसके आंकड़े कब सार्वजनिक किए जाते हैं। जातिगत जनगणना केवल आंकड़ों की कवायद नहीं, बल्कि यह देश के सामाजिक ढांचे और नीतिगत दिशा में बड़ा परिवर्तन ला सकती है।
यह भी पढ़े: मुख्य चुनाव आयुक्त Gyanesh Kumar, 3 दिवसीय झारखंड दौरे पर



