Ranchi- Bandhu Tirkey: पूर्व मंत्री, झारखण्ड सरकार की समन्वय समिति के सदस्य और झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि सुप्रसिद्ध शिक्षाविद और प्रतिष्ठित कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री स्वर्गीय सुशील कुमार बागे की धर्मपत्नी सिल्विया बागे का निधन बहुत ही दुखद घटना है और यह झारखण्ड की अपूरणीय क्षति है.
सिल्विया बागे ने झारखण्ड के साथ ही तत्कालीन बिहार में भी अतुलनीय योगदान दिया: Bandhu Tirkey
श्री तिर्की ने कहा कि, बहुत ही अभावग्रस्त एवं संसाधन विहीन पृष्ठभूमि से निकलकर अपने-आप को शिक्षित करने और शिक्षाविद के रूप में स्थापित करने के साथ ही समाज और राजनीतिक क्षितिज पर सिल्विया बागे ने झारखण्ड के साथ ही तत्कालीन बिहार में भी अतुलनीय योगदान दिया. विशेष रूप से 1984 में सुशील कुमार बागे के निधन के पश्चात श्रीमती बागे ने कांग्रेस नेता और बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में बिहार – झारखण्ड की राजनीति एवं समाज को दिशा भी दी.
उन्होंने कहा कि सिल्विया बागे ने जिस प्रकार से स्वर्गीय बागे की विरासत और अपने राजनीतिक दायित्वों को संभाला उसे झारखण्ड सहित बिहार भी हमेशा याद रखेगा.21 मई 1924 को खूंटी जिले के सिरि परगना के टकरा हातुदमी गाँव में जन्म लेनेवाली सिल्विया बागे का आज राजधानी रांची में 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया.
पॉल प्रमिला शीतल मुंडा और औरफा बाजरे की पुत्री सिल्विया बागे, सुशील कुमार बागे की पत्नी थीं जो शिक्षाविद् होने के साथ-साथ रांची विमेंस कॉलेज, रांची विश्वविद्यालय, छोटानागपुर एजुकेशनल डेवलपमेंट ट्रस्ट, बिरसा कॉलेज खूंटी, छोटानागपुर टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज रांची, सिल्ली कॉलेज, कार्तिक उरांव कॉलेज गुमला, गणेश लाल अग्रवाल कॉलेज डालटेनगंज, एस.के, बागे कॉलेज के साथ ही चाईबासा, झरिया, गोविंदपुर, सिमडेगा और गुमला के अनेक विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के संस्थापक रहे.
1963, 1970 और 1971 में कांग्रेस के निर्वाचित विधायक के रुप में बिहार सरकार में मंत्री बने: Bandhu Tirkey
उन्होंने अनेक शैक्षणिक संस्थानों के माध्यम से झारखण्ड के शिक्षा जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया. साथ ही श्री बागे, राजनीति में भी पूरी तरीके से सक्रिय थे और झारखण्ड की जमीनी भावना की अच्छी समझ उनमें थी. 1952 से वे बिहार विधानसभा के सदस्य बने और 1952 से 1962 के 10 वर्षों तक विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे. बाद में 1963, 1970 और 1971 में कांग्रेस के निर्वाचित विधायक के रुप में बिहार सरकार में मंत्री बने.
श्री तिर्की ने कहा कि राजनीति, शिक्षा और समाज में योगदान का सकारात्मक प्रभाव भी उनकी पत्नी सिल्विया बागे पर पड़ा और यही कारण था कि 1984 में उनके निधन के बाद उन्होंने एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद और जमीन से जुड़े राजनीतिज्ञ की धर्मपत्नी की भूमिका का बखूबी निर्वहन किया और वे 1986 से लेकर 1998 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को निभाया.
श्री तिर्की ने कहा कि मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की जन्मस्थली भी वही गाँव है जहाँ श्रीमती बागे का जन्म हुआ था और एक तरफ जहाँ उनकी अभाव में ज़मीन से जुड़ी समृद्ध पारिवारिक पृष्ठभूमि थी वहीं गाँव की मिट्टी में भी झारखण्डी गौरव था और बाद के दिनों में उनके पति का भी प्रभाव उनपर पड़ा.
सिल्विया बागे की झारखण्ड एवं यहाँ के लोगों के प्रति भावना एवं संवेदना अतुलनीय थी: Bandhu Tirkey
श्री तिर्की ने कहा कि सिल्विया बागे की झारखण्ड एवं यहाँ के लोगों के प्रति भावना एवं संवेदना अतुलनीय थी. उनके योगदान को झारखण्ड कभी भी भुला नहीं पायेगा. वरिष्ठ नेता ने कहा कि श्रीमती बागे से हम सभी को प्रेरणा लेने और झारखण्ड का निरंतर विकास करते रहने की आवश्यकता है और यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी. श्रीमती बागे के निधन पर श्रद्धांजलि व्यक्त करनेवालों में कांग्रेस के संगठन प्रभारी रविन्द्र सिंह, अमूल नीरज खलको, सतीश पॉल मुंजनी आदि शामिल हैं.