
रांची: भाजपा सांसद Nishikant Dubey और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे के बीच चल रही जुबानी जंग अब तीखे तंज तक पहुंच चुकी है।
शनिवार को दुबे ने राज ठाकरे की हिंदी में दी गई धमकी पर कटाक्ष करते हुए कहा, “मैंने राज ठाकरे को हिंदी सिखा दी।”
ठाकरे ने दी थी धमकी, Nishikant Dubey ने किया पलटवार
दरअसल, एक हालिया कार्यक्रम में राज ठाकरे ने हिंदी में बोलते हुए कहा था, “तुम मुंबई आओ, समंदर में डूबो-डूबो कर मारेंगे।”
यह बयान उन्होंने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की ओर से कुछ दिनों पहले दिए गए बयान “तुमको पटक पटक के मारेंगे” के जवाब में दिया था।
ठाकरे का यह हिंदी भाषण सुनने के बाद दुबे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व Twitter) पर तंज कसते हुए पूछा – “मैंने राज ठाकरे को हिंदी सिखा दी?” इस एक वाक्य ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी।
मैंने राज ठाकरे को हिंदी सिखा दी ? https://t.co/5YpM1SrzDt
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) July 18, 2025
भाषा की सियासत और मराठी मानुस की राजनीति
राज ठाकरे, जो ‘मराठी मानुस’ के एजेंडे को लेकर पहचाने जाते हैं, हाल ही में स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी लागू करने के फैसले का विरोध कर रहे थे। इस मुद्दे पर उन्होंने अपने चचेरे भाई और शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे से भी हाथ मिला लिया था।
हालांकि राज्य सरकार ने बाद में तीसरी भाषा नीति को वापस ले लिया, लेकिन ठाकरे और उनकी पार्टी मनसे ने इसे हिंदी थोपने की कोशिश बताया।
Nishikant Dubey का पलटवार: “हिंदी विरोध के नाम पर हिंसा क्यों?”
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने न सिर्फ राज ठाकरे के हिंदी विरोध पर सवाल उठाए, बल्कि हाल ही में मुंबई में हुई हिंसा की घटनाओं को भी उठाया, जहां कुछ लोगों पर मराठी न बोल पाने की वजह से हमला किया गया था।
दुबे ने यह भी आरोप लगाया कि राज ठाकरे अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए भाषा को हथियार बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी के खिलाफ आंदोलन के नाम पर किसी पर हमला करना, संविधान और लोकतंत्र का अपमान है।
मनसे प्रमुख ने कार्यकर्ताओं को दी ‘चेतावनी’
दिलचस्प बात यह है कि इसी बीच राज ठाकरे ने अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि अगर किसी आंदोलन के दौरान वे किसी की पिटाई करें, तो उसका वीडियो न बनाएं। इस बयान ने फिर एक बार मनसे की राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या पार्टी हिंसात्मक रणनीतियों को बढ़ावा देती है।
भाषा के नाम पर शुरू हुई यह बहस अब सियासी हमलों और व्यक्तिगत तंज तक पहुंच चुकी है। एक तरफ राज ठाकरे हिंदी के खिलाफ अभियान चला रहे हैं, तो दूसरी तरफ निशिकांत दुबे इसे राष्ट्रभाषा के सम्मान का विषय बता रहे हैं। अब देखना है कि इस जंग में अगला तीर किस तरफ से चलता है।



