Ranchi: Shivshankar Oraon: अनुसूचित जनजाति एवं अन्य वननिवासी अधिकार अधिनियम 2006 अनुसूचित जनजाति एवं अन्य अधिकार अधिनियम 2006 में पारित हुआ।
आगामी वर्ष होने वाले चुनाव को देखते हुए ही यह कवायत की जा रही है: Shivshankar Oraon
यह केंद्रीय कानून है, जिसका अनुपालन करना राज्य सरकार का कर्तव्य है। कानून को पारित हुए 17 वर्ष बीत गया है। वर्तमान सरकार जो आदिवासियों के जल,जंगल, जमीन की रक्षा करने के सपने दिखाकर सत्ता पर काबिज हुई लेकिन विगत 4 वर्षों का कार्यकाल पूरा होने को है तब आदिवासियों को वन अधिकार पट्टा दिए जाने की सूद हुई है। इससे यह प्रतीत होता है कि आगामी वर्ष होने वाले चुनाव को देखते हुए ही यह कवायत की जा रही है।
हेमंत सोरेन सरकार इसे भी अपना एक चुनावी इवेंट के रूप में तो आयोजन नहीं कर रही है: Shivshankar Oraon
उन्होंने कहा कि वनों में रहने वाले वनों पर आश्रित आदिवासियों एवं वननिवासियों के हितों की लगातार अनदेखी करने वाली वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार इसे भी अपना एक चुनावी इवेंट के रूप में तो आयोजन नहीं कर रही है।समाज की भावनाओं को भुलाने में माहिर सरकार अबुआ वीर अबुआ दिशुम अभियान के बहाने एक बार फिर से नई पारी खेलना चाहते हैं यह स्पष्ट है।
आदिवासी जनता सचेत रहकर सरकार की अंदरुनी मंशा को जाने, तभी अधिकार मिलेगा: Shivshankar Oraon
वन अधिकार पट्टा दिया जाना सरकारी कर्तव्य और अनुसूचित जनजातियों का हक है इसे देने में सरकार एवं प्रशासन की उदासीनता और सहयोग से परेशान वनाश्रित समाज को ना तो व्यक्तिगत पट्टा मिला और ना ही सामूहिक वन अधिकार पट्टा। आगामी 29 दिसंबर तक का अभियान क्या 4 वर्षों के गड्ढे को भर भी पाएगा या इस अभियान वन पट्टा के नाम पर गरीब वननिवासियों आदिवासियों से उगाही का एक नया फ्रंट तो नहीं खोल रही है। आदिवासी जनता सचेत रहकर सरकार की अंदरुनी मंशा को जाने, तभी अधिकार मिलेगा।
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