Ranchi: विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान , राँची में आयोजित Jharkhand Adivasi Mahotsav 2023 के दूसरे दिन के राष्ट्रीय आदिवासी साहित्य सेमिनार का आयोजन तीन सत्रों में किया गया।
10 अगस्त आदिवासी महोत्सव का दूसरा दिन
आदिवासी महोत्सव 2023 के दूसरे दिन के कार्यक्रम की सूची।
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पहले सत्र में विभिन्न राज्यों से आये ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों, साहित्यकारों, कथाकारों ने आदिवासी जीवन को उपन्यास में ढालने की प्रक्रिया,यथार्थ बनाम संवेदना । लोक कथाओं और लोकगीतों का लेखन में उपयोग विषय पर अपने विचार रखे।
Jharkhand Adivasi Mahotsav 2023: ट्राइबल लिट्रेचर सेमिनार
इसी क्रम में पहले सत्र की शुरुआत तेलंगाना से आये श्री सुरेश जगन्नाथम ने की। उन्होंने आदिवासी समाज के जीवन को समझने में उपन्यास की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उपन्यास के माध्यम से हमें आदिवासियों की संस्कृति एवं जीवनी को समझने में मदद मिलती है ।वहीं छत्तीसगढ़ से आयी वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती कुसुम माधुरी टोप्पो ने आदिवासी उपन्यास में भाषा की शैली की जानकारी दी। उन्होंने साहित्य में बिंब के स्वरूप की विस्तार से चर्चा की।
Jharkhand Adivasi Mahotsav 2023: उपन्यास के माध्यम से आदिवासियों की जीवनी को समझने का प्रयास
केंद्रीय विश्वविद्यालय, तेज़पुर से आये साहित्यकार एवं आलोचक प्रो प्रमोद मेढ़ा ने आदिवासी उपन्यास के सृजन की दुश्वारियों के बारे में जानकारी दी।आदिवासियों उपन्यासों की लेखनी में आनेवाली चुनौतियों एवं उनके ख़तरों के बारे में विस्तार से बताया। आदिवासी उपन्यास को लिखने की कला एवं शैली के उपयोग के बारे में भी जानकारी दी। आदिवासियों के बारे में शोध करने वाले प्रो एडवर्ड और हिन्दी साहित्य के लेखक प्रो सानी के लेखन के माध्यम से आदिवासियों के जीवन के चित्रण को प्रस्तुत किया।
पश्चिम बंगाल से आए कथाकार श्री सुंदर मनोज हेम्ब्रम ने कहा कि उन्होंने संथाली भाषा में कई रचनाएँ लिखीं हैं । उन्होंने अपनी रचित रचनाओं के माध्यम से आदिवासी समाज की जीवनी को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि कहानियों में घटनाओं का समायोजन होता है जबकि कथाऐं रोचक होती हैं।
Jharkhand Adivasi Mahotsav 2023: दिल्ली विश्वविद्यालय से आयीं प्रो स्नेहलता नेगी ने किन्नौर प्रजाति के बारे में में जानकारी दी
एस एस मेमोरियल कॉलेज की प्राध्यापक प्रो सावित्री बड़ाईक ने पहाड़गाथा एवं मताई उपन्यास के माध्यम से आदिवासी समाज की जीवनी एवं संस्कृति को समझाने का प्रयास किया। नागालैंड विश्वविद्यालय से आए श्री थूनबुइ ने जनजातियों के बारे में लिखे साहित्य के बारे में चर्चा की गई। दिल्ली विश्वविद्यालय से आयीं प्रो स्नेहलता नेगी ने किन्नौर प्रजाति के बारे में में जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि आदिवासियों के जीवन जीने का तरीक़ा एवं उनकी संस्कृति लोकगीतों में देखने को मिलती है।त्रिपुरा विश्वविद्यालय से आयीं प्रो मिलान रानी जमातीया ने हाचुक खुरिको उपन्यास के माध्यम से आदिवासी के जीवन एवम् संस्कृति को समझाया।इस अवसर पर सेवानिवृत्ति प्राध्यापक, छत्तीसगढ़ डा कोमल सेन सरवा और वरिष्ठ कथाकार छत्तीसगढ़ श्री लोक बाबू ने भी अपने विचार रखे।
Jharkhand Adivasi Mahotsav 2023: दूसरा सत्र
दूसरे सत्र का विषय समाजशास्त्र,ऐतिहासिक एवं अन्य शोध परख लेखन था जिसका आरंभ उड़ीसा से आये वरिष्ठ साहित्यकार श्री हेमंत दलपती ने किया । उन्होंने फ़िल्म के माध्यम से आदिवासियों की जीवन की स्थिति के बारे में चर्चा की। फ़िल्म में आदिवासियों की उपेक्षा के बारे में बताया। कश्मीर से आए श्री जान मोहम्मद हाकिम ने कश्मीर की गुर्जर जनजातियों के बारे में जानकारी साझा की। वाराणसी से आयीं प्रो वंदना चौबे ने आदिवासियों की वर्तमान स्थितियों एवं भविष्य में उनके विकास कि संभावनाओं के बारे में जानकारी दी ।
उन्होंने कहा कि आदिवासी कि परंपरा बहुत ही सुदृढ़ है, आदिवासी हमेशा से ही तकनीक के मामले में काफ़ी आगे हैं वो सपना इलाज पुरानी पद्धति से करतें हैं । प्रकृति का संरक्षण उनसे बेहतर कोई नहीं जान सकता। सुल्तानपुर से आयीं चर्चित कवयित्री एवं लेखिका श्रीमती रूपम मिश्र ने आदिवासी स्त्रियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री अनिल यादव ने कहा कि आदिवासियों के पास प्रकृति एवं समाज की जो जानकारी है वह बहुत व्यापक है। आदिवासियों की जो सबसे क़ीमती चीज़ है जिसे बचाने की ज़रूरत है वह है सामुदायिकता । उन्होंने कहा कि आदिवासी हमेशा से ही प्रकृति पूजक रहे हैं और प्रकृति को क़रीब से जानते हैं।दिल्ली से आए लेखक एवं कवि श्री अशोक कुमार पांडेय एवं डा शंभुनाथ वरिष्ठ साहित्यकार, वरिष्ठ साहित्यकार ,गुवाहाटी श्री दिनकर कुमार ने भी अपने विचार रखे।
Jharkhand Adivasi Mahotsav 2023: तीसरा सत्र
तीसरे सत्र में प्रो वंदना चौबे, वरिष्ठ साहित्यकार, चर्चित कवयित्री एवं लेखिका श्रीमती रूपम मिश्र, प्रो पार्वती तिर्की एवं प्रो जसिंता केरकेट्टा ने अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से आदिवासियों की संस्कृति, सभ्यता एवं उनकी संस्कृति के बारे में प्रकाश डाला। सत्र का संचालन श्रीमती सरोज झा ने किया।
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