
Sahibganj: अमर शहीद Sidho-Kanho की जयंती के अवसर पर क्रांति स्थल, पंचकठिया, साहिबगंज में विदिन समाज सुसार बैसी द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम में शामिल हुए मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन।
11 अप्रैल को Sidho-Kanho जयंती मनाई जाती है
अंग्रेजी शासन के वक्त अंग्रेजों की चुंगल से मुक्त एवं अत्याचार से देश को आजादी दिलाने वाले वीर सिदो कान्हू कौन है? आज की आखिर क्यों आदिवासी समुदाय के लोग सिद्धो – कान्हू की खोन से रंगने वाली कर्मभूमि भोगनाडीह जाओ स्थापित वीर सिद्धो – कान्हू की मूर्ति के पैर का धूल माथे पर तिलक लगाकर उनकी पूजा करते हैं। संथाल परगना स्थित साहिबगंज में 11 अप्रैल को सिद्धो – कान्हू जयंती मनाई जाती है।
Sidho-Kanho ने भोगनाडीह की धरती पर ही संथाल हूल का शंखनाद किया था
वीर सिद्धो – कान्हू के बलिदान और अंग्रेजों एवं महाजनों के शोषण के खिलाफ आंदोलन और बलिदानों की ओर से अंबेडकर साहेब गंज के भोगनाडीह गांव में वीर सिद्धो – कान्हू की जयंती उन वीरों की याद ताजा कर देती है। आदिवासी समाज के लोगों को अंग्रेजों की शोषण और अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए सिद्धो – कान्हू ने भोगनाडीह की धरती पर ही संथाल हूल का शंखनाद किया था।
आदिवासी समाज के लोग वीर सिद्धो – कान्हू भगवान के तरह पूजते है। सिद्धो – कान्हू ने आदिवासी तथा गैर आदिवासियों को अंग्रेजों के चुंगल एवं अत्याचार से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। अंग्रेजी हुकूमत की जंजीरों को तार-तार करने वाले वीर सपूतों की शहादत की याद में जयंती समारोह हर वर्ष 11 अप्रैल और वीरों की कर्मभूमि साहिबगंज के भोगनाडीह में मनाया जाता है।
जयंती समारोह भोगनाडीह पहुंचने वाले भारत के कई प्रांतों से विद्वान, लेखक, इतिहासकार पहुंचते हैं। और शहीदों के इतिहास को कुरेद कर जीवन वृतांत पर रोशनी डालकर उनके बलिदान की यादों को और भी ताजा कर जाते है।
Sidho-Kanho संथाल विद्रोह पूरे एशिया महादेश में विख्यात हुआ
सिद्धो – कान्हू ने 30 जून 1853 को पांचकठिया में बरगद के पेड़ के नीचे संथाल हूल का बिगुल फूंका था। इसके पश्चात सन 1855 और 56 में संथाल विद्रोह पूरे एशिया महादेश में विख्यात हुआ।
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